नागरिकता
- K.K. Lohani
- Jul 7, 2018
- 7 min read
Updated: Mar 16, 2021

भाग – 2
नागरिकता
(अनुच्छेद – 5-11)
भारत में एकल नागरिकता की व्यवस्था की गयी है।
नागरिकता के सम्बन्ध में भारतीय संविधान के भाग-2 तथा अनुच्छेद 5-11 में प्रावधान किया गया है।
इन अनुच्छेद में केवल यह प्रावधान किया गया है की भारत का नागरिक कौन है और किसे भारत का नागरिक माना जायेगा।
इसके अनुच्छेद -11 के अंतर्गत संसद को भविष्य में नागरिकता के सम्बन्ध में कानून बनाने का अधिकार प्रदान किया गया है।
भारत के बंटवारे और बड़ी संख्या में लोगो के प्रवास ने नागरिकता के निर्धारण के लिए बहुत बड़ी समस्याए पैदा कर दी। संविधान में नागरिकता से सम्बंधित अनुच्चेद 5 से 11 में संविधान प्रारूपण समिति को सबसे अधिक परेशान किया और उसके अनेक प्रारूप तैयार करने तथा उसे अंतिम रूप देने में दो वर्ष से भी ज्यादा समय लगे।
सामान्यतया नागरिकता से तीन बातो का बोध होता है –
असैनिक तथा राजनितिक अधिकार जिनका राज्य के संरक्षण में नागरिकता उपयोग करता है।
कर्तव्य जिनका राज्य के प्रति नागरिक पालन करता है तथा जिनमें सामान्य हितो की वृद्धि करना सम्मिलित है।
राज्य के प्रति नागरिक की निष्ठा शक्ति।
लास्की ने कहा था की ”अच्छा नागरिक अच्छा राज्य बनाता है और बुरा नागरिक बुरा राज्य बनता है।”
भारत का कोई व्यक्ति भारत के किसी भी क्षेत्र में निवास करता हो, वह केवल भारत का नागरिक होगा। एक व्यवस्था राष्ट्रीय एकता व अखंडता को कायम रखने के लिए दृष्टिगत की गई है।
1955 में प्राप्त किये गए भारतीय नागरिकता अधिनियम में नागरिकता के अर्जन तथा निरसन के बारे में विधि बनाई गई।
अनुच्छेद 5-8 के अंतर्गत प्रत्येक उस व्यक्ति को नागरिकता प्रदान की गई है जो संविधान के आरम्भ के समय निम्नलिखित में से किसी एक श्रेणी के अंतर्गत आता था।
भारत का अधिवासी तथा भारत में जन्मा – भारत संघ की अधिकांश जनसंख्या ऐसे व्यक्तियो की थी।
अधिवासी, जो भारत में नहीं जन्मा, किन्तु जिसके माता-पिता में से कोई भारत में जन्मा था।
अधिवासी, जो भारत में नहीं जन्मा , किन्तु जो पांच वर्ष से अधिक समय तक भारत का सामान्यतया निवासी रहा था।
भारत का निवासी किन्तु जो 1 मार्च, 1947 के बाद पाकिस्तान चला गया था. और बाद में पुनर्वास लेकर भारत लौट आया था।
पाकिस्तान का निवासी किन्तु जो 19 जुलाई, 1948 से पहले भारत में प्रवास कर गया था अथवा जो उस तारीख के बाद आया था। किन्तु 6 महीने से अधिक समय से भारत में निवास कर रहा था और जिसके विहित ढंग से पंजीकरण करा लिया था।
भारत के बाहर रहने वाला किन्तु जिसके माता-पिता में से कोई या पितामह-पितामही अथवा मातामह-मातामही में से कोई भारत में जन्मा था।
अधिवास : सामान्यतया व्यक्ति से उस आवास से होता है. जहाँ वह स्थायी आधार पर रहने का इरादा रखता है।
राज्य एवं व्यक्ति के बीच का संवैधानिक सम्बन्ध ही नागरिकता होती है. इस वैधानिक सम्बन्ध के बदले राज्य अपने नागरिको को कई विशेषाधिकार देता है. जैसे मत देने का अधिकार संवैधानिक पद प्राप्त करने का अधिकार, नौकरी पाने का अधिकार तथा कुछ मौलिक अधिकार जैसे – भारत में अनुच्छेद – 15, 16, 19, 29 सिर्फ नागरिको को प्राप्त होते है. इस विशेषाधिकार के बदले राज्य अपने नागरिको से कुछ अपेक्षाए भी करता है जैसे राष्ट्र की सुरक्षा और रक्षा, देश की सेवा करना आदि.
अनुच्छेद – 5(क)
यदि कोई व्यक्ति जो भारत के राज्य क्षेत्र अधिवासी है तथा उसका जन्म भारत में हुआ है वह भारत का नागरिक होगा, चाहे उसके माता-पिता की नागरिकता कुछ भी हो.
अनुच्छेद – 5(ख)
यदि कोई व्यक्ति भारत के राज्य क्षेत्र का अधिवासी है तथा उसके माता-पिता में से कोई भारत में जन्मा था. वह भारत का नागरिक होगा. चाहे उसके माता-पिता की नागरिकता कुछ भी हो या चाहे उसका जन्म कही भी हुआ हो.
अनुच्छेद – 6(क)
यदि कोई व्यक्ति अथवा उसके माता या पिता अथवा उसके दादा या दादी अथवा उसके नाना या नानी 1935 के अधिनियम के अनुसार भारत में जन्मा हो वह भारत का नागरिक होगा.
अनुच्छेद – 6(ख)
वह व्यक्ति जो 19 जुलाई 1948 के पहले पाकिस्तान से भारत आया हो और साधारण तरीके से भारत में रह रहा हो वह भारत का नागरिक होगा.
अनुच्छेद – 5(ग)
वह व्यक्ति जो 19 जुलाई 1948 के बाद पाकिस्तान से भारत आया हो वह आवेदन देकर भारत की नागरिकता ले सकता है.
अनुच्छेद – 7
वह व्यक्ति जो 1 मार्च 1947 के बाद पाकिस्तान गया हो तथा भारत सरकार के निवास सम्बन्धी किसी आदेश के तहत पाकिस्तान से भारत लौटा हो और उसे भारत में रहना हो वह आवेदन देकर भारत की नागरिकता हो सकता है.
अनुच्छेद – 8
यदि कोई व्यक्ति अथवा उसके माता या पिता अथवा उसके दादा या दादी अथवा उसके नाना या नानी में से कोई 1935 की अधिनियम से अनुसार अविभाजीत भारत में जन्मा हो और उस समय भारत और पाकिस्तान से अलग किसी अन्य देश में रह रहा हो, वह आवेदन देकर भारत का नागरिक हो सकता है.
अनुच्छेद – 9
अनुच्छेद – 9 में उपबंध किया गया है की यदि किसी व्यक्ति ने किसी विदेशी राज्य की नागरिकता स्वेच्छा से अर्जित कर ली है तो भारत की नागरिकता का उसका अधिकार ख़त्म हो जायगा और वह अनुच्छेद 5, 6, 8 के आधार पर नागरिकता के अधिकार का दावा नहीं कर सकता. यह प्रावधान केवल उन लोगो के सम्बन्ध में है जिन्होंने संविधान प्रारंभ होने के पहले स्वेच्छा से किसी विदेशी राज्य की नागरिकता प्राप्त कर ली थी. संविधान के प्रारंभ के पश्चात उत्तपन्न होनेवाले मामलो में नागरिकता अधिनियम 1955 के उपबंधो के अनुसार कार्रवाही की जाएगी.
अनुच्छेद – 10 (नागरिकता का बरकरार रहना)
अनुच्छेद – 10 के अनुसार नागरिकता संसद द्वारा बनाये गए विधि के अधीन होगा. इसमें कहा गया है की किसी नागरिक का अधिकार संसद द्वारा बनाये विधि के अलावा किसी अन्य प्रकार से नहीं छिनी जा सकती है.
अनुच्छेद – 11
अनुच्छेद – 11 के अनुसार संसद को नागरिकता के अर्जन, समाप्ति तथा नागरिकता सम्बन्धी प्रावधानों में परिवर्तन करने की अबाध शक्ति प्राप्त होगी. इसी शक्ति के आलोक में संसद के द्वारा भारतीय नागरिकता अधिनियम 1955 पारित किया गया है जिसके अंतर्गत भारत में निम्न शर्तो के आधार पर नागरिकता अर्जित करने का प्रावधान रखा गया है।
नागरिकता अधिनियम 1955 के अनुसार निम्न आधार पर भारतीय नागरिकता अर्जित की जाती है।
1. जन्म के आधार पर
यदि किसी व्यक्ति का जन्म 26 जनवरी 1950 को या उसके बाद भारत में हुआ हो तथा उसके माता-पिता अथवा माता या पिता में से कोई भारत का नागरिक है तो वह भारत का नागरिक होगा. इसमें माता सम्बन्धी प्रावधान 1986 में जोड़ा गया है।
2. वंशिये परम्परा के द्वारा
यदि किसी व्यक्ति का जन्म 26 जनवरी 1950 को या उसके बाद भारत के बाहर हुआ हो तथा उसके माता या पिता में से कोई भारत का नागरिक है तो वह भारत का नागरिक होगा। इसमें माता सम्बन्धी प्रावधान 1992 में जोड़ा गया है।
3. आवेदन या रजिस्ट्रेसन के द्वारा
इसके लिए निम्न में से किसी एक शर्त को पूरा करना आवश्यक है।
कम से कम 10 वर्षों से भारत के राज्य क्षेत्र में रह रहा हो।
कोई विदेशी स्त्री भारतीय पुरुष से शादी करती है या भविष्य में करेगी।
वैसा भारतीय जो अविभाजित भारत से बाहर किसी अन्य देश में रह रहा हो।
राष्ट्रमंडल देश का वह व्यक्ति जो भारत में रह रहा हो या भारत सरकार की सेवा में कार्यरत हो।
4. देशीकरण द्वारा नागरिकता की प्राप्ति
कोई भी विदेशी व्यक्ति जो व्यस्क हो चुका है और प्रथम अनुसूचि में वर्णित देशो का नागरिक नहीं है तो वह भारत सरकार देशीकरण के लिए आवेदन दे सकता है यदि किसी व्यक्ति को भारत सरकार के द्वारा देशीकरण का प्रमाण पत्र प्राप्त हो जाता है तो इस आधार पर वह व्यक्ति भारत की नागरिकता प्राप्त कर सकता है। देशीकरण का प्रमान पत्र देने के लिए भारत सरकार निम्नलिखित शर्त रख सकती है।
वह किसी ऐसे देश का नागरिक न हो जहाँ भारतीय देशीकरण द्वारा नागरिक बनने से रोक दिए जाते हो।
उसने अपने देश की नागरिकता का परित्याग कर दिया हो और केंद्रीय सरकार को इस बात की सुचना दे दी हो।
वह देशीकरण के लिए आवेदन करने की तिथि से पहले 12 वर्ष तक या तो भारत में रहा हो या भारत सरकार की सेवा में रहा हो. इस सम्बन्ध में केंद्रीय सरकार यदि उचित समझे तो उस अवधि को घटा सकती है।
उक्त 12 वर्ष से पहले कुल 7 वर्षों में से कम से कम 4 वर्षों तक उसने भारत में निवास किया हो या भारत सरकार की नौकरी में रहा हो।
वह एक अच्छे चरित्र का व्यक्ति हो।
वह राज्य निष्ठा की शपथ ग्रहण करे।
उसे भारतीय संविधान में उल्लेखित किसी भाषा का उसे प्रयाप्त ज्ञान हो।
देशीकरण के प्रमाणपत्र की प्राप्ति के उपरांत उसका भारत में निवास करने या भारत सरकार की नौकरी करने का इरादा हो।
लेकिन यदि कोई व्यक्ति कला, विज्ञान, साहित्य, विश्वशांति, दर्शन या मानव विकाश के क्षेत्र में विशेष कार्य कर चुके हा तो उसे बिना किसी शर्त को पूरा किये हुए भी देशीकरण का प्रमाणपत्र दिया जा सकता है।
5. अर्जित भू-भाग के विलयन द्वारा नागरिकता
यदी किसी नये भू-भाग को भारत में शामिल किया जाता है। तो उस क्षेत्र में निवास करने वाले व्यक्तियों को स्वतः भारत की नागरिकता प्राप्त हो जाती है। गोवा, दमन एवं दीव, पोंडिचेरी तथा सिक्किम के राज्य क्षेत्र में निवास करने वाले व्यक्तियों को इन्हें भारत में विलयन पर इसी प्रकार नागरिकता प्राप्त हुई थी।
नागरिकता समाप्त होने की शर्तें
अनुच्छेद 19 के अनुसार यदि भारत का कोई नागरिक किसी अन्य देश की नागरिकता ले लेता है तो उसकी भारत की नागरिकता समाप्त हो जाती है।
1955 के एक्ट के अनुसार नागरिकता समाप्त होने की शर्ते
कोई व्यक्ति स्वेच्छा से नागरिकता का त्याग कर सकता है।
यदि कोई भारतीय संविधान के प्रति निष्ठा व्यक्त करता है।
यदि कोई युद्ध काल में शत्रु देश की सहायता करता है
यदि कोई धोखे से या गलत तरीके से भारत की नागरिकता को लिया हो।
देशीयकरण या पंजीकरण से नागरिकता प्राप्त होने 5 वर्ष के भीतर किसी अन्य देश के नामकरण द्वारा 2 वर्ष या अधिक की सजा प्राप्त हुई है।
यदि लगातार 7 वर्षों से भारत से बाहर रह रहा हो।
यदि कोई भारतीय महिला किसी विदेशी पुरुष से शादी करती है।
नागरिकता संशोधन अधिनियम 2005
इसके तहत भारतीय मूल के लोगों के लिए भारत में दोहरी नागरिकता का प्रावधान किया गया है जिसके तहत भारतीय मूल के लोगों को संपत्ति खरीदने, निवास करने इत्यादि के विशेष प्रावधान किए गए हैं लेकिन संवैधानिक पद प्राप्त करने, मत देने या नौकरी करने का अधिकार नहीं दिया गया है। पहले यह व्यवस्था 2003 में लाई गई थी और फिर 16 देशों के भारतीय नागरिक मूल के लोगों को दोहरी नागरिकता की सुविधा दी गई थी। 2005 के संशोधन के द्वारा पाकिस्तान और बांग्लादेश को छोड़कर अन्य सभी देशों के लिए इस व्यवस्था को लागू किया गया है यह व्यवस्था निम्नलिखित शर्तों के अधीन रखी गई है।
वैसे व्यक्ति जो वर्तमान में किसी अन्य देश के नागरिक हैं लेकिन 26 जनवरी 1950 को या उसके बाद भारत के नागरिक थे।
वैसे व्यक्ति जो वर्तमान में किसी अन्य देश के नागरिक है लेकिन 26 जनवरी 1950 को भारत का नागरिक बनने के पात्र थे।
वैसे व्यक्ति जो वर्तमान में किसी अन्य देश के नागरिक हैं परंतु भारत के किसी ऐसे क्षेत्र से संबंध रखते हैं जो 15 अगस्त 1947 के बाद भारत का हिस्सा बना है।
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