top of page

समता का अधिकार

  • Writer: K.K. Lohani
    K.K. Lohani
  • Jul 14, 2018
  • 6 min read

Updated: Mar 15, 2021



समता का अधिकार

समता या समानता का अधिकार लोकतंत्र का आधार स्तंभ माना जाता है। भारतीय संविधान के भाग-3 में अनुच्छेद- 14 से 18 तक इन अधिकारों की संविधानिक व्याख्या प्रस्तुत की गई है। भारतीय संविधान में समानता अधिकार – इंग्लैंड से और विधि का समान संरक्षण – अमेरिका से लिया गया है। समता के अधिकार पांच हैं –


A.  विधि के समक्ष समता का अधिकार

  1. अनुच्छेद 14 द्वारा प्रदत्त अधिकार सभी व्यक्तियों अर्थात नागरिकों तथा गैर नागरिकों को प्रदान किया गया है। इस अनुच्छेद में कहा गया है कि भारत के राज्य क्षेत्र में राज्य किसी भी व्यक्ति को विधि ( कानून) के समक्ष समानता या कानून के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा। इस अनुच्छेद में दो प्रकार के अधिकारों का उल्लेख किया गया है – विधि (कानून) के समक्ष समानता तथा कानून का समान संरक्षण।

  2. विधि के समक्ष समानता : विधि का क्षैतिज विस्तार होता है जिसके अनुसार कानून की नजर में हर कोई बराबर होता है।

  3. विधियों का समान संरक्षण : विधि का ऊर्ध्वाधर विस्तार होता है जिसमें विधियों का वर्गीकरण किया जाता है और एक प्रकार के लोगों को एक प्रकार की विधि से शासित किया जाता है। यह सिद्धांत समान परिस्थितियों में रहने वाले के लिए समानता के आधार पर लागू होता है। विधियों का समान संरक्षण नैसर्गिक और निष्पक्ष न्याय के सिद्धांत पर आधारित होता है इसमें विधि के वर्गीकरण का आधार भौगोलिक, संपत्ति, समय, व्यवसाय, व्यापार इत्यादि हो सकता है।

  4. संविधान के अनुच्छेद 14 में उल्लिखित विधि के समक्ष समता का आशय यह है कि राज्य सभी व्यक्तियों के लिए एक सा कानून बनाएगा तथा उन्हें एक समान लागू करेगा। दूसरे शब्दों में समान परिस्थितियों में सभी व्यक्तियों के साथ कानून का व्यवहार एक जैसा ही होगा।

  5. विधि के समक्ष समानता का यह तात्पर्य नहीं है कि औचित्यपूर्ण आधार पर और कानून द्वारा मान्य किसी भेदभाव की भी व्यवस्था नहीं की जा सकती। जैसे कि – यदि कानून कर लगाने के संबंध में धनी और गरीब में, और सुविधाएं प्रदान करने में स्त्री और पुरुषों में भेद करता है तो इस के कानून के समक्ष समानता का उल्लंघन नहीं किया जा सकता।

  6. जिस प्रकार, इंग्लैंड में सार्वजनिक हितों को ध्यान में रखते हुए इस नियम के कुछ अपवाद माने गए हैं, उसी प्रकार भारत में भी भारतीय संविधान में यह प्रावधान के कतिपय अपवाद माने गए हैं।

  7. राष्ट्रपति या राज्यपाल अपने पद के अधिकारों के प्रयोग और कर्तव्यों के पालन के अंतर्गत किए गए किसी कार्य के लिए न्यायालय के प्रति उत्तरदाई नहीं होगा।

  8. न्यायालयों में राष्ट्रपति या राज्यपाल के कार्यकाल में उनके विरुद्ध किसी भी प्रकार की फौजदारी कार्यवाही नहीं की जा सकती।

  9. कोई भी न्यायालय राष्ट्रपति या राज्यपाल के कार्यकाल में उन्हें गिरफ्तार करने या जेल में रखने का आदेश नहीं दे सकेगा।

  10. राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल के रूप में अपना पद ग्रहण करने से पूर्व या पश्चात व्यक्तिगत रूप से किए गए किसी कार्य के विरुद्ध अनुतोष की मांग करने वाली कोई व्यवहार कार्यवाहियां उस की पदावधि में किसी न्यायालय में तब तक संस्थित नहीं की जाएगी जब तक कार्य का स्वरूप, वाद का कारण, संस्थित करने वाले पक्षकार का नाम, निवास स्थान लिखित सूचना को यथा स्थिति राष्ट्रपति और राज्यपाल को दिए जाने अथवा उसके कार्यालय में छोड़े जाने के पश्चात दो माह का समय ( अनुच्छेद- 361, खंड-4) व्यतीत ना हो गया हो। उपयुक्त उन्मुक्तियों के बावजूद राष्ट्रपति पर महाभियोग अथवा भारत सरकार या अन्य राज्य सरकारों के ऊपर मुकदमे चलाया जा सकते हैं।


  11. उपयुक्त अपवादों के अतिरिक्त अंतर्राष्ट्रीय विधि, राजप्रमुखो एवं राजदूतों के संबंध में भी मान्यता प्राप्त अपवाद है।

B. धर्म, मूल, वंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर विभेद या प्रतिषेध

  1. अनुच्छेद 15 (1) के अनुसार राज्य किसी नागरिक के साथ केवल जाति, धर्म, जन्म स्थान, लिंग, मूल वंश या इनमें से किसी आधार पर भी भेदभाव नहीं करेगा।

  2. अनुच्छेद 15 (2) के अनुसार कोई नागरिक केवल जाति, धर्म, जन्म स्थान, लिंग, मूलवंश या इसमें से किसी भी आधार पर सार्वजनिक स्थलों में प्रवेश या सार्वजनिक समागम के स्थानों के उपयोग से वंचित नहीं किया जाएगा। सार्वजनिक स्थल एवं समागम के स्थान के अंतर्गत दुकान, भोजनालय, पार्क, मनोरंजन के स्थल, कुआं, तालाब, स्नानाघाट, सड़क इत्यादि को शामिल किया जा सकता है।

  3. अनुच्छेद 15 (2) राज्य के साथ-साथ जनता को भी सामाजिक भेदभाव करने से रोकता है।

  4. अनुच्छेद 15 के खंड (3), (4) तथा (5) में विभेद न करने के सामान्य सिद्धांतों के अपवाद अंतर्निहित है।

  5. अनुच्छेद 15 (3) के अनुसार राज्य महिलाओं एवं बच्चों के लिए विशेष प्रावधान कर सकती है इसी आधार पर राज्य महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष कार्यक्रम चलाती है।

  6. अनुच्छेद 15 (4) के अनुसार राज्य सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों तथा SC/ST के लिए विशेष प्रावधान कर सकती है।

  7. अनुच्छेद 15 (5) के अनुसार राज्य सामाजिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों तथा SC/ST के लिए शिक्षण संस्थानों में प्रवेश हेतु विशेष व्यवस्था करेगा। यह व्यवस्था प्राइवेट शिक्षण संस्थानों में तो लागू होता है लेकिन अल्पसंख्यक संस्थानों में लागू नहीं होता है।

C.  लोक नियोजन के विषय में अवसर की समता

  1. अनुच्छेद 16 (1) के अनुसार सभी नागरिकों को राज्य के अधीन नियुक्ति या नियोजन के अवसर की समानता होगी।

  2. अनुच्छेद 16 (2) के अनुसार पद के संबंध में केवल धर्म, मूल, वंश, जाति, लिंग, उद्भव, जन्मस्थान, निवास या इनमें से किसी के आधार पर ना तो कोई नागरिक अपात्र होगा और ना उसमें विभेद किया जाएगा।

इसके अपवाद

  1. अनुच्छेद 16 (3) के अनुसार संसद विधि द्वारा राज्यों के अधीन नियुक्ति या नियोजन में निवास संबंधी अपेक्षा निर्धारित कर सकती है जैसा कि आंध्रप्रदेश के संबंध में संसद ने किया भी था।

  2. अनुच्छेद 16 (4) के अनुसार राज्य पिछड़े हुए नागरिकों के किसी वर्ग के पक्ष में जिनका प्रतिनिधित्व राज्य की राय में राज्य के अधीन सेवाओं में पर्याप्त नहीं है नियुक्तियों या पदों के आरक्षण का प्रावधान कर सकता है। इसी आधार पर 1990 के मंडल आयोग की सिफारिश को लागू करते हुए अन्य पिछड़े वर्गों को 27% आरक्षण दिया गया है। SC/ST का आरक्षण भी इसी अनुच्छेद के आधार पर है।

  3. अनुच्छेद 335 के अनुसार आरक्षण के दावा को प्रशासनिक दक्षता को बनाए रखते हुए ही स्वीकार किया जाएगा। इसी आधार पर सर्वोच्च न्यायालय ने आरक्षण की अधिकतम सीमा को 50% निर्धारित कर दिया है।

  4. अनुच्छेद 16 (4) ( क) के अनुसार पदोन्नति में SC/ST को आरक्षण का लाभ प्राप्त होगा।

  5. अनुच्छेद 16 (4) (ख)के अनुसार आरक्षित सीट न भरने पर यदि इन सीटों की अलग से रिक्ति निकाली जाती है और सभी सीटें आरक्षित रहती है तो यह सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का उल्लंघन नहीं होगा। इसे अग्रनयन का सिद्धांत कहा जाता है।

  6. अनुच्छेद 16 (5) के अनुसार किसी धार्मिक या सांप्रदायिक संस्था के क्रियाकलाप से जुड़ा कोई पदाधिकारी किसी विशिष्ट धर्म या संप्रदाय का है तो यह अनुच्छेद 16 (1) में दिए गए अवसर की समानता का उल्लंघन नहीं होगा।

D.  अस्पृश्यता का अंत

  1. अनुच्छेद 17 में प्रावधान किया गया है कि अस्पृश्यता का अंत किया जाता है और उसका किसी भी रुप में आचरण निषिद्ध किया जाता है। अस्पृश्यता से उपजी किसी निर्योग्यता को लागू करना अपराध होगा, जो विधि के अनुसार दंडनीय होगा। अस्पृश्यता का अर्थ उन सामाजिक कुरीतियों से है जो कि भारत में जाति प्रथा से उत्पन्न हुई।

  2. अस्पृश्यता का अंत करने के लिए कानून बनाने का अधिकार संसद को अनुच्छेद 35 द्वारा दिया गया है।

  3. अस्पृश्यता के निवारण के लिए विधि बनाने का अधिकार संसद को प्राप्त है इसी अधिकार के तहत संसद के द्वारा सिविल संरक्षण अधिनियम 1935 पारित किया गया है जिसमें अस्पृश्यता का व्यवहार करने वाले के लिए दंड का प्रावधान किया गया है।

  4. निम्नलिखित कार्यो को अस्पृश्यता के आधार पर दंडनीय अपराध घोषित किया गया है।

  5. सार्वजनिक पूजा स्थलों में प्रवेश करने से या ऐसे स्थान में पूजा पाठ करने से रोका जाना।

  6. अनुसूचित जाति या जनजाति के किसी व्यक्ति का अस्पृश्यता के आधार पर अपमान करना।

  7. प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से अस्पृश्यता का उपदेश देना।

  8. ऐतिहासिक, दार्शनिक, धार्मिक या अन्य आधार पर अस्पृश्यता को न्यायोचित ठहराना।

  9. किसी दुकान, जलपान गृह, होटल या सार्वजनिक मनोरंजन के स्थान पर प्रवेश पर रोक लगाना।

  10. चिकित्सालय में प्रवेश बाधित करना तथा कोई सामान बेचने आया सेवाएं देने से मना करना।

E.  उपाधियों का अंत

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 18 के अंतर्गत उपाधियों का अंत करते हुए

  1. अनुच्छेद 18 (1) में यह प्रावधान किया गया है कि – राज्य, सेना या विद्या संबंधी सम्मान के सिवाय और कोई उपाधि प्रदान नहीं करेगा। जबकि

  2. अनुच्छेद 18(2) में उल्लेखित है की भारत का कोई नागरिक किसी विदेशी राज्य से कोई उपाधि स्वीकार नहीं करेगा।

  3. अनुच्छेद 18 (3) में प्रावधान है कि कोई व्यक्ति जो भारत का नागरिक नहीं है राज्य के अधीन लाभ या विश्वास के किसी पद को धारण करते हुए किसी विदेशी राज्य से कोई उपाधि राष्ट्रपति की सहमति के बिना स्वीकार नहीं करेगा। तथा

  4. अनुच्छेद 18 (4) के अंतर्गत राज्य के अधीन लाभ या विश्वास का पद धारण करने वाला कोई व्यक्ति किसी विदेशी राज्य से उसके अधीन किसी रूप में कोई भेंट, उपलब्धि या पद राष्ट्रपति की सहमति के बिना स्वीकार नहीं करेगा।

एक प्रश्न उठाया गया कि विशिष्ट सराहनीय सेवा के लिए गणतंत्र दिवस को राष्ट्रपति द्वारा वर्षों से भारतरत्न, पद्म विभूषण, पद्म भूषण और पद्मश्री के जो सम्मान दिए जाते हैं क्या वे संविधान के अनुच्छेद 18 का उल्लंघन नहीं करते ?

  1. उच्चतम न्यायालय के निर्णय के अनुसार अब स्थिति यह है कि इन सामानों को ऐसी उपाधि नहीं माना जा सकता जो संविधान के अनुच्छेद 18 का उल्लंघन हो यदि कोई इसके द्वारा सम्मानित व्यक्ति इन्हें अपने नाम के साथ आगे या पीछे लगाता है तो उससे सम्मान वापस ले लिया जा सकता है।

Commentaires


bottom of page