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लोकपाल एवं लोकायुक्त

  • Writer: K.K. Lohani
    K.K. Lohani
  • Oct 23, 2020
  • 5 min read

Updated: Mar 15, 2021




लोकपाल एवं लोकायुक्त


  • लोकपाल शब्द संस्कृत शब्द ‘लोपाला’ से लिया गया है जिसका अर्थ होता है, ‘लोगों की देखभाल करने वाला’।

  • यह एक Anti-Corruption Authority (Body) है। जिसका उद्देश्य है भारत में व्याप्त भ्रष्टाचार के विरोध के लिए Public Interest को प्रस्तुत (Represent) करना।

  • लोकपाल के अंतर्गत केंद्र सरकार और उसके सार्वजनिक अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार या उससे जुड़े आरोपों की जाँच के मामले आते हैं।

  • लोकपाल – राष्ट्रीय(National) स्तर पर भ्रष्टाचार की जाँच करती है।

  • लोकायुक्त – राज्य (State) स्तर पर भ्रष्टाचार की जाँच करता है।

  • सर्वप्रथम Ombudsman 1809 ई॰ में स्वीडेन के संविधान में शामिल किया गया।

  • ओमबुड् (Ombud) एक स्वीडिश शब्द है।

  • स्वीडन का ओमबुड्समैन संसद द्वारा चार साल के लिए नियुक्त किया जाता है।

  • डोनल्ड सी॰ राॅबर्ट के अनुसार ओमबुड्समैन का आशय ऐसे पदाधिकारी से है जो कि विधायिका द्वारा प्रशासनिक एवं न्यायिक कार्रवाई के खिलाफ परिवादों के निवारण के लिए नियुक्त किया जाता है।

  • Ombudsman को ही भारत में लोकपाल के नाम से जाना जाता है।

  • इंगलैण्ड, न्युजीलैंड डेनमार्क में इसे ‘संसदीय आयुक्त’ (Parliamentary Commissioner) तथा सोवियत संघ में इसे अभियोजन (Prosecutor) के नाम से जाना जाता है।

  • समाजवादी देशों जैसे – सोवियत संघ (आज का रूस), चीन, पोलैंड, हंगरी, चेकोस्लोवाकिया तथा रोमानिया में इसे मुख्तार प्रणाली (Procurator System) कहते है।

  • आज के रूस में Procurator General का पद है, जिसकी नियुक्ति सात वर्ष के लिए की जाती है।

  • सर्वप्रथम लोकायुक्त का गठन 1971 में महाराष्ट्र में हुआ था।

  • ओडिशा में यह अधिनियम 1970 में पारित हुआ परंतु उसे 1983 में लागू किया गया।

  • वर्ष 2013 तक 21 राज्यों तथा 1 संघशासित क्षेत्र (दिल्ली) ने अपने यहाँ लोकायुक्त संस्था की स्थापना की है।

  • राजस्थान, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में लोकायुक्त के साथ उप-लोकायुक्तों के पदों का भी गठन किया गया है।

  • लोकायुक्त व उपलोकायुक्तों की नियुक्ति संबंधित राज्य के राज्यपाल द्वारा की जाती है।

  • लोकायुक्त की नियुक्ति के लिए राज्यपाल द्वारा राज्य के उच्च न्यायालय के प्रमुख न्यायाधीश तथा राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता से परामर्श अनिवार्य है।

भारत में लोकपाल

  • भारत में पहली बार मई 1968 में इंदिर गांधी के नेतृत्व में सबसे पहले लोकपाल बिल लोकसभा में पेश किया गया था, लेकिन राज्यसभा में पारित नहीं हो सका।

  • दूसरी बार 1971 में एक बार फिर लोकपाल विधेयक प्रस्तुत किया गया, लेकिन लोकसभा (5वीं) भंग होने के कारण पारित नहीं हो सका।

  • वर्ष 2011 तक विधेयक पारित करने के लिए आठ प्रयास किये गए पर लेकिन असफल रही।

  • वर्ष 2002 में एम॰एन॰ वेंकटचलैया की अध्यक्षता में संविधान की कार्यप्रणाली की समीक्षा के लिए गठित आयोग ने लोकपाल व लोकायुक्तों की नियुक्ति की सिफारिश करते हुए प्रधानमंत्री को इसके दायरे से बाहर रखने की बात कही।

  • अन्ना हजारे के नेतृत्व में भ्रष्टाचार के विरूद्ध भारत आंदोलन ने केंद्र में तत्कालीन UPA सरकार पर दबाव बनाया और इसके परिणामस्वरूप संसद के दोनों सदनों में लोकपाल लोकायुक्त विधेयक 2013 पारित हुआ।

  • 1 जनवरी, 2014 को राष्ट्रपति ने इसे अपनी सहमति दे दी और 16 जनवरी, 2014 को यह लागू हो गया।

लोकपाल एवं लोकायुक्त (संशोधन) विधेयक 2016

  • लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम 2013 को संशोधित करने के लिए यह विधेयक संसद ने जुलाई 2016 में पारित किया।

  • इसके अंतर्गत यह निर्धारित किया गया कि विपक्ष के मान्यता प्राप्त नेता के अभाव में सबसे बड़े एकल विरोधी दल का नेता चयन समिति का सदस्य होगा।

  • इसके वर्ष 2013 के अधिनियम की धारा 44 में भी संशोधन किया गया जिसमें प्रावधान है कि सरकारी सेवा आने के 30 दिनों के भीतर लोकसेवक को अपनी सम्पत्तियों एवं दायित्वों का विवरण प्रस्तुत करना होगा। संशोधन विधेयक के द्वारा 30 दिन की समय सीमा समाप्त कर दी गई, अब लोकसेवक अपनी सम्पत्तियों और दायित्वों की घोषणा सरकार द्वारा निर्धारित रूप में एवं तरीके से करेंगे।

  • यह ट्रस्टियों और बोर्ड के सदस्यों को भी अपनी तथा पती/पत्नी की परिसंपत्तियों की घोषणा करने के लिए दिए गए समय में बढ़ोतरी करता है, उन मामलों में जहाँ वे एक करोड़ से अधिक सरकारी या 10 लाख रुपए से अधिक विदेशी धन प्राप्त करते है।

लोकपाल की संरचना

  • लोकपाल कुल 9 सदस्यों से मिलकर गठिन हुआ है। जिसमें 1 चेयरपर्सन + 4 न्यायिक सदस्य + 4 गैर न्यायिक सदस्य होंगे।

  • लोकपाल संस्था का चेयरपर्सन या तो भारत का पूर्व मुख्य न्यायाधीश या सर्वोच्च न्यायालय का पूर्व न्यायाधीश सत्यनिष्ठा व प्रकांड योग्यता का प्रख्यात व्यक्ति होना चाहिए। जिसके पास भ्रष्टाचार विरोधी नीति, सार्वजनिक प्रशासन, सतर्कता, वित्त, बीमा और बैंकिंग, कानून का प्रबंधन में न्यूनतम 25 वर्षों का विशिष्ट ज्ञान एवं अनुभव हो।

  • लोकपाल संस्था के चार न्यायिक सदस्य या तो सर्वोच्च न्यायालय का पूर्व न्यायाधीश या किसी उच्च न्यायालय का पूर्व मुख्य न्यायाधीश होने चाहिए।

  • 4 गैर-न्यायिक सदस्यों में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग/अल्पसंख्यक और महिला श्रेणी से होने चाहिए। गैर-न्यायिक सदस्य असंदिग्ध सत्यनिष्ठ व प्रकांड योग्यता का प्रख्यात व्यक्ति होना चाहिए। जिसके पास भ्रष्टाचार विरोधी नीति, सार्वजनिक प्रशासन, सतर्कता, वित्त, बीमा और बैंकिंग, कानून व प्रबंधन में न्यूनतम 25 वर्षों का विशिष्ट ज्ञान एवं अनुभव हो।

  • लोकपाल के चेयरपर्सन और सदस्यों का कार्यकाल 5 वर्ष या 70 वर्ष की आयु तक है।

  • सदस्यों की नियुक्ति चयन समिति की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।

  • चयन समिति में प्रधानमंत्री जो कि चेयरपर्सन होता है, लोकसभा अध्यक्ष, लोकसभा के विपक्ष के नेता, भारत के मुख्य न्यायाधीश या उसके द्वारा नामित कोई न्यायाधीश और एक प्रख्यात न्यायविद् से मिलकर गठित होता है।

  • लोकपाल तथा सदस्यों के चुनाव के लिए चयन समिति न्यूनतम 8 सदस्यों के एक सर्च पैनल (खोजबीन समिति) गठित करती है।

लोकपाल सर्च पैनल (खोजबीन समिति)

  • लोकपाल अधिनियम 2013 के अधीन कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग उन अभ्यर्थियों की सूची तैयार करेगी जो लोकपाल संस्था का चेयरपर्सन या सदस्य बनाने के इच्छुक हो।

  • तैयार सूची को, आठ सदस्यीय खोजबीन समिति के पास भेजी जाएगी जो नामों को शाॅर्टलिस्ट करेगी और प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में गठित चयन समिति के समक्ष प्रस्तुत करेगी।

  • सदस्यों को चुनने का अधिकार चयन समिति का होगा। चयन समिति खोजबीन समिति द्वारा सुझाए नामों को चुन भी सकती है और नहीं भी।

  • सितम्बर 2018 में सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय की पूर्व न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में एक खोजबीन समिति गठित की थी।

  • 2013 के अधिनियम के अनुसार सभी राज्य सरकारें अधिनियम लागू होने के एक साल के अंदर लोकायुक्त पद स्थापित करे।

लोकपाल का क्षेत्राधिकार एवं शक्तियाँ

  • लोकपाल के क्षेत्राधिकार में प्रधानमंत्री, मंत्री, संसद सदस्य, A, B, C और Dअधिकारी तथा केंद्र सरकार के अधिकारी शामिल है।

  • लोकपाल का प्रधानमंत्री पर क्षेत्राधिकार केवल भ्रष्टाचार के उन आरोपो तक सीमित रहेगा जो कि अंतर्राष्ट्रीय संबंधों, सुरक्षा, लोक व्यवस्था, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष से संबंद्ध न हो।

  • संसद में कही किसी बात या डाले गए वोट के मामले में मंत्रियों या सांसदों पर लोकपाल का क्षेत्राधिकार नहीं होगा।

  • लोकपाल अधिनियम के अंतर्गत सभी लोक सेवक अपने और अपने आश्रितों की परिसंपतियों व देयताओं को प्रस्तुत करें।

  • लोकपाल के पास CBI की जाँच करने तथा उसे निर्देशित करने का अधिकार है।

  • लोकपाल की जाँच इकाई को एक सिविल न्यायालय के समान शक्तियाँ प्रदत है।

  • विशेष परिस्थितियों में भ्रष्टाचार से प्राप्त आय या परिसंपत्तियों को जब्त कर सकती है।

  • भ्रष्टाचार से जुड़े आरोपो में लोकपाल ‘लोकसेवक’ के स्थानांतरण या निलम्बन की सिफारिश का अधिकार है।

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