प्रागैतिहासिक काल | Prehistoric Periods
- K.K. Lohani
- May 22, 2020
- 5 min read
Updated: Mar 14, 2021

प्रागैतिहासिक काल (Prehistoric Periods)
प्रागैतिहासिक काल महत्वपूर्ण तथ्य
मानव का विकास एक समान या लगातार नहीं हुआ। बल्कि यह एक क्रमिक विकास था। मानव के विकास की कहानी के उस भाग या काल को इतिहास कहते है जिसके लिए लिखित विवरण मिलते है। मानव लिखना सिखने के लाखो वर्ष पूर्व धरती पर रह चुके थे। आदि मानवों ने इस लम्बे अतित की घटनाओं का कोई लिखित विवरण नहीं रखा, इसी अलिखित काल को प्रागैतिहासिक काल (prehistoric periods) कहते है।
मनुष्य ने अपना सांस्कृतिक जीवन लगभग 30 लाख वर्ष पहले शुरू किया था। अतः प्रागैतिहास के अंतर्गत इस लम्बे अतीत के आरंभ से लेकर लगभग ई॰पू॰ 3000 तक मनुष्य की संस्कृति का अध्ययन करते है। इसके बाद आघ-इतिहास (Proto-history) आरंभ हो जाता है।
संस्कृति : वातावरण की जिन वस्तुओं को मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए विशेष रूप में ढ़ाल लेता है, उन्हें प्रागैतिहासिक पुरातत्वेत्ता की भाषा में ‘संस्कृति’ कहा जाता है।
प्रागैतिहासिक काल (prehistoric periods) के विषय में जो भी जानकारी मिलती है वह पाषाण के उपकरणों, मिट्टी के बर्तनों, खिलौनों आदि से प्राप्त होती है।
आघ ऐतिहासिक काल : इस काल में लेखन कला के प्रचलन के बाद भी उपलब्ध लेख पढ़े नहीं जा सकते है।
ऐतिहासिक काल : मानव विकास के उस काल को इतिहास कहा जाता है जिसके लिए लिखित विवरण उपलब्ध है।
मानव जीवन की संपूर्ण अवधि में से केवल 0.1 प्रतिशत समय का लिखित विवरण उपलब्ध है।
मनुष्य की कहानी आज से लगभग 10 लाख वर्ष पहले आरंभ होती है पर ‘ज्ञानी मानव’ (होमो सैपियंस) का प्रवेश इस धरती पर आज से करीब तीस या चालीस हजार वर्ष पहले हुआ।
लगभग 30000 वर्ष पहले ‘आधुनिक मानव’ का विकास हुआ जिसे हम ‘होमो सेपियन सेपियन’ के नाम से जानते है।
पृथ्वी की भूवैज्ञानिक समय सारणी को महाकल्पों (Eras) में विभाजित किया जाता है। प्रत्येक महाकल्प को अनेक कल्पों (Periode) में विभाजित करते है। और फिर प्रत्येक कल्प अनेक युगों (Epochs) में बाँटा जाता है।
भूवैज्ञानिक इतिहास में पृथ्वी के अंतिम महाकल्प को ‘नूतनजीव महाकल्प’ (Cenozoic Era) कहा जाता है। आज से लगभग 10000 वर्ष पहले।
समस्त इतिहास को तीन भागों में विभाजित किया जाता है।
1. प्राक् इतिहास या प्रागैतिहासक काल (Pre-historic Age)
पुरा पाषाण काल (अज्ञात काल से 8000 ई॰पू॰) (a) निम्न/पूर्व पुरापाषाण काल (b) मध्य पुरापाषाण काल (c) उच्च पुरापाषाण काल
मध्य पाषाण काल (8000 ई॰पू॰ से 4000 ई॰पू॰)
नवपाषाण काल (4000 ई॰पू॰ से 2500 ई॰पू॰)
2. आघ ऐतिहासिक काल (Proto-historic Age)
सिंधु घाटी सभ्यता (2500 ई॰पू॰ से 1500 ई॰पू॰)
वैदिक सभ्यता (1500 ई॰पू॰ से 600 ई॰पू॰) (a) उत्तर वैदिक काल (1500 ई॰पू॰ से 1000 ई॰पू॰) (b) उत्तर वैदिक काल (1000 ई॰पू॰ से 600 ई॰पू॰)
3. ऐतिहासिक काल (Historic Age)
प्राचीन भारत का इतिहास (600 ई॰पू॰ से 712 ई॰)
मध्यकालीन भारत का इतिहास (712 ई॰ से 1707 ई॰)
आधुनिक भारत का इतिहास (1707 ई॰ में वर्तमान काल)
(I) पुरापाषाण काल (Palaeolithic Age)
यूनानी भाषा में Palaios का मतलब प्राचीन तथा Lithos का मतलब पाषाण या पत्थर होता है। इन्हीं शब्दों के आधार पर पाषाण काल शब्द बना है।
यह काल आखेटक एवं खाघ संग्राहक के रूप में भी जाना जाता है।
गोल पत्थरों से बनाये गये प्रस्तर उपकरण मुख्य रूप से ‘सोहन नदी घाटी’ (पाकिस्तान) से मिलते है।
पुरापाषाणकालीन मानव को कृषि का ज्ञान नहीं था, इस कारण से वह वनों से प्राप्त फलफूल, आखेट में मारे गये पशु, नदियों एवं झीलों से पकड़ी गई मछलियों आदि पर निर्भर था अर्थात् इस काल का मानव आखेटक और खाघ—संग्राहक था।
सर्वाधिक प्राचीन चित्रकारी पूर्वपुरापाषाण युगीन भीमबेटका में देखने को मिली है। जिसमें 243 प्रागैतिहासिक शैलाश्रय है। प्रारंभिक चित्रों में हरे एवं गहरे लाल रंगों का उपयोग हुआ है।
चित्रों से पता चलता है कि पुरापाषाण युग के लोग छोटे—छोेटे समूहों में रहते थे और उनका जीवन निर्वाह पशुओं एवं पेड़ पौधों पर निर्भर था।
भारत में पुरापाषाणकालीन मनुष्य के शारीरिक अवशेष कहीं से भी नहीं प्राप्त हुए है।
इस काल में मनुष्यों की जीवन पूर्ण रूप से शिकार पर निर्भर था।
भारतीय आदिम मानव अनगढ़ एवं अपरिष्कृत उपकरणों का प्रयोग करता था। ऐसे उपकरण गंगा—यमुना के कछारी भागों को छोड़कर समुचे भारत में पाये गये है।
आदि मानव को धातुओं का ज्ञान नहीं था। खेती करना, आग जलाना, और बर्तन बनाने की कला का ज्ञान नहीं था।
आरंभिक पुरापाषाणकालीन औजार उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में बेलन नदी घाटी में पाए गए हैं।
एक मात्र जीवाश्म मध्य नर्मदा घाटी के हथनौरा (होशंगाबाद) से एक मानव की खोपड़ी मिली है।
पुरापाषाण काल को भी तीन खंडों में बाँटा गया है।
(a) निम्न/पूर्व पुरापाषाण काल
इस काल में मानव मूलतः ‘क्वार्ट्जाइट’ पत्थर का उपयोग करते थे।
चौपर-चॉपिंग (पेबुल संस्कृति) : इसके उपकरण सर्वप्रथम पंजाब की सोहन नदी घाटी से प्राप्त हुए है। इसी कारण इसे सोहन संस्कृति भी कहा जाता है।
हैण्ड-एक्स संस्कृति : इसके उपकरण सर्वप्रथम मद्रास के समीप बादमदुराई तथा अतिरमपक्कम से प्राप्त किए गए। इसे मद्रास संस्कृति भी कहते है।
(b) मध्य पुरापाषाण काल
मध्य पुरापाषाणकाल में क्वार्ट्जाइट पत्थरों के स्थान पर जैस्पर, चर्ट, फ्लिंट आदि के पत्थर प्रयुक्त होने लगे।
फलकों की अधिकता के कारण इस काल को फलक संस्कृति की संज्ञा दी जाती है।
फलक एक प्रकार का औजार होता है जिसे पत्थर को तोड़कर बनाया जाता है।
(c) उच्च पुरापाषाण काल
इस युग के उपकरण ब्लेड होते थे।
उच्च पुरापाषाणकाल अवस्था के विश्वव्यापी संदर्भ में दो विशेषताएँ है — नए ‘चकमक उघोग’ की स्थापना और आधुनिक मानव (होमोसेपियंस) का उदय।
(II) मध्य पाषाण काल (Mesolithik Age)
पाषाण युगीन संस्कृति में 9000 ई॰पू॰ एक मध्यवर्ती आई जिसे मध्यपाषाण युग कहते है।
भारत में मध्यपाषाण काल के विषय में जानकारी सर्वप्रथम सी॰एल॰ कालाईल द्वारा सन् 1867 ई॰ में विंध्यन क्षेत्र से लघु पाषाण उपकरण खोजे जाने हुई।
भीलवाड़ा जिले में कोठारी नदी के तट पर स्थित बागोर भारत का सबसे बड़ा मध्यपाषाणिक स्थल है।
मध्य प्रदेश में ‘आदमगढ़’ और ‘राजस्थान’ में नागोर पशुपालन के प्राचीनतम साक्ष्य प्रस्तुत करते है, जिसका समय लगभग 5000 ई॰पू॰ हो सकता है।
मध्य पाषाण काल में कुत्ता मानव का प्रथम पालतु पशु था।
इस काल में प्रयुक्त होने वाले उपकरण आकार में बहुत छोटे होते थे जिन्हें ‘माइक्रोलिथ’ (लघु पाषाणोपकरण) कहते थे।
(III) नव पाषाण काल (Neolithic Age)
नवपाषाण काल या नियोलिथिक शब्द का प्रयोग सबसे पहले सर जान लुबाक ने 1865 में प्रकाशित पुस्तक प्रीहिस्टिारिक टाइम्स में दिया था।
भारत में नवपाषाण काल से सम्बद्ध पुरातात्विक खोज प्रारंभ करने का श्रेय डॉ॰ प्राइमरोज को जाता है, जिन्होंने 1842 ई॰ में कर्नाटक के लिंगसुगुर नामक स्थान से उपकरण खोजे थे।
नवपाषाण युगीन प्राचीनतम बस्ती पाकिस्तान में स्थित बलूचिस्तान प्रांत के मेहरगढ़ में है।
मेहरगढ़ में कृषि के प्राचीनतम साक्ष्य मिले है।
इलाहाबाद में स्थित कोल्डिहवा एकमात्र ऐसा नवपाषाणिक पुरास्थल है, जहाँ से चावल या धान का प्राचीनतम साक्ष्य प्राप्त हुए है।
कृषि एवं पहिया का आविष्कार नवपाषाण काल में हुए थे।
भारत में चिरांद में हड्डी के अनेक उपकरण पाए गए है। चिरांद पटना से 40 किमी॰ पश्चिम में स्थित है।
बुर्जहोम के लोग खुरदुरे, धूसर मृदभांडों का प्रयोग करते थे।
यहाँ कब्रो में पालतू कुत्ते भी अपने मालिकों के शवों के साथ दफनाए जाते थे।
नोट: प्रागैतिहासिक काल के समय से सम्बंधित तथ्य अलग-अलग पुस्तकों में अलग-अलग मिलते है। अतः इस ब्लाॅग में दी गई तारीखों की जानकारी का मैं किसी भी तरह की पुष्टि नहीं करता। अतः आप सभी पाठकों से अनुरोध है कि तारीखों की पुष्टि के लिए आप को जो भी पुस्तक विश्वसनीय लगे उसकी मदद लें।
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