सिन्धु घाटी सभ्यता के महत्वपूर्ण स्थल
- K.K. Lohani
- Jul 2, 2020
- 5 min read
Updated: Apr 6, 2021

सिन्धु घाटी सभ्यता के महत्वपूर्ण स्थल
सिन्धु सभ्यता का क्षेत्र काफी विशाल था। यह पश्चिम में मकरान तट-प्रदेश पर सुतकागेंडोर से पूर्व में जिला मेरठ के आलमगीरपुर तक और उत्तर में जम्मु के माँदा से लेकर दक्षिण में किम सागर-संगम पर भगतराव तक फैली थी। समस्त समकालीन सभ्यताओं में सिन्धु सभ्यता निस्संदेह सबसे विस्तृत थी। क्षेत्र की दृष्टि से यह मिस्र या सुमेरियाई सभ्यता से कहीं विशाल थी। सिन्धु सभ्यता के अब तक 1400 केेन्द्रों को खोजा जा सका है जिसमें 925 केन्द्र भारत में है। 80 प्रतिशत स्थल सरस्वती नदी और उसकी सहायक नदियों के आस-पास है। अभी तक कुल खोजों में 3 प्रतिशत स्थलों का ही उत्खनन हो पाया है। परीक्षा की दृष्टि से निम्न पुरास्थल महत्वपूर्ण है –
हड़प्पा
इसका सर्वप्रथम उल्लेख 1826 ई॰ में चार्ल्स मेसन ने किया। हड़प्पा का दूसरा उल्लेख तब आया जब 1856 ई॰ में कराँची से लाहौर रेलवे लाइन बिछाते समय जॉन ब्रंटन और विलयम ब्रंटन ने यहाँ से प्राप्त ईंटों का उपयोग रोड़ों के रूप में किया। भारतीय पुरातत्व के महानिदेशक जॉन मार्शल के निर्देश पर 1921 ई॰ में दयाराम साहनी ने इसकी खोज की। हड़प्पा क्षेत्रफल की दृष्टि से सिन्धु सभ्यता का दूसरा सबसे बड़ा स्थल है। इसके दुर्ग के टीले को AB नाम दिया गया। हड़प्पा से प्राप्त दो टीलों में पूर्वी टीले को नगर टीला तथा पश्चिमी टीले को दुर्ग टीला के नाम से संबोधित किया गया है। दुर्ग के बाहर उपर दिशा में स्थित लगभग 6 मीटर ऊँचे टीले को F नाम दिया गया। इसी टीले पर अन्नागार, अनाज कूटरने, के वृत्ताकार चबूतरे और श्रमिक आवास के साक्ष्य मिले है। अन्नागार रावी नदी के तट पर स्थित था। सिंधु सभ्यता में अभिलेख युक्त मुहरें सर्वाधिक हड़प्पा से मिले है। हड़प्पा नगर क्षेत्र के दक्षिण दिशा में एक कब्रिस्तान मिला है जिसे समाधि आर-37 नाम दिया गया है।
मोहनजोदड़ों
यह पाकिस्तान के सिन्ध प्रान्त के लरकाना जिले में सिन्धु नदी के दाहिने तट पर स्थित था। यह क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा नगर था। मोहनजोदड़ों का अर्थ है – प्रेतों का टीला। इसे सिन्धु का बाग भी कहा जाता है। मोहनजोदड़ों की खोज 1922 ई॰ में राखालदास बनर्जी ने की। मोहनजोदड़ों के दुर्ग टीले को स्तूप टीला भी कहते है, क्योंकि इसे टीलों पर कुषाण काल का एक स्तूप बना है। मोहनजोदड़ों का सबसे प्रमुख सार्वजनिक स्थल विशाल स्नानागार है। इसका जलाशय दुर्ग के टीले में है। स्नानागार का फर्श पकी ईंटों का बना है। इस विशाल स्नानागार का उपयोग सार्वजनिक रूप से धर्मानुष्ठान सम्बंधी स्नान के लिए होता था। व्हीलर के अनुसार मोहनजोदड़ों की सबसे बड़ी इमारत अन्नागार या अन्नकोठार है। मोहनजोदड़ों के एच-आर- क्षेत्र से काँसे की नर्तकी की मूर्ति विशेष उल्लेखनीय है। मोहनजोदड़ों मे कुल 21 मानव कंकाल प्राप्त हुए है। हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ों एक दूसरे से 482 किलोमीटर दूर सिन्धु नदी द्वारा जुड़े थे। पिग्गट महोदय ने इन नगरों को सिन्धु सभ्यता की जुड़वा राजधानियाँ कहा है।
चन्हूदड़ो
इसकी खोज 1931 ई॰ में एम॰जी॰ मजुमदार ने की। मैके को यहाँ से मनके बनाने का कारखाना तथा भट्ठी प्राप्त हुई थी। यहाँ से एक ऐसी मुद्रा मिली है जिसपर तीन घडि़याल तथा दो मछलियों का अंकन है। यह एकमात्र ऐसा स्थल है जहाँ से वक्राकार ईंटें मिली है। चन्हूदड़ों एकमात्र ऐसा स्थल है जहाँ पर मिट्टी की पकी हुई पाइपनुमा नालियों का प्रयोग किया गया।
लोथल
गुजरात में अहमदाबाद जिले में भोगवा नदी के तट पर स्थित लोथल की खोज सर्वप्रथम डॉ॰ एस॰आर॰राव ने वर्ष 1954 में की थी। लोथल नगर योजना तथा अन्य भौतिक वस्तुओं के आधार पर इसे लघु हड़प्पा या लघु मोहनजोदड़ों भी कहा जाता है। सागर तट पर स्थित यह स्थल पश्चिमी एशिया से व्यापार का एक प्रमुख बंदरगाह था। लोथल की सबसे प्रमुख विशेषता ‘जहाजों की गोदी’ (डॉक-यार्ड) हैं। लोथल से तीन युग्मित समाधियों के उदाहरण मिले है। जिसमें यहाँ सती प्रथा का अनुमान लगाया जाता है। अग्निकुण्ठ के अवशेष भी मिले है।
कालीबंगा
कालीबंगा का अर्थ है – काले रंग की चुडि़याँ। कालीबंगा राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में स्थित है। इस स्थल की खोज अमलानंद घोष ने की थी। मोहनजोदड़ों के भवन पक्की ईंटों के बने थे, जबकि कालीबंगा के मकान कच्ची ईंटों के बने थे। यह प्राचीन सरस्वती एवं दृष्द्वती नदियों के बीच स्थित था। सरस्वती का आधुनिक नाम – घग्घर। दृष्द्वती का आधुनिक नाम – चौतंग। यहाँ से जुते हुए खेत के साक्ष्य मिले हैं। जिसकी जुताई आड़ी-तिरक्षी की गई है। यहाँ से अंत्येष्टि संस्कार की तीनों विधियों – पूर्ण समाधीकरण, आंशिक समाधीकरण, एवं दाह संस्कार के साक्ष्य मिले है। युगल शवाधान की भी प्राप्ति हुई है।
धौलावीरा
यह नगर गुजरात के कच्छ जिले के भचाऊ तालुका में खादिर नाम के एक द्वीप जिसे स्थानीय भाषा में बैठ कहते है। के उत्तरी पश्चिमी कोने पर बसा हुआ एक छोटा गाँव है। धौलावीरा के टीलों की खोज सन् 1967-68 ई॰ में श्री जे॰पी॰ जोशी ने की। यहॉ के टीले पर एक पुराना कुँआ है जिसके कारण इसका नाम धौलावीरा पड़ गया। धौला का अर्थ ‘सफेद’ तथा वीरा का अर्थ ‘कुँआ’ है। धौलावीरा का नगर आयताकार बना था। यह भारत में स्थित सिन्धु सभ्यता का दूसरा सबसे बड़ा नगर है। हड़प्पा सभ्यता का एकमात्र स्टेडियम ‘क्रीड़ागार’ यही से प्राप्त हुआ है। एक नेवले की पत्थर की मूर्ति की प्राप्ति। यहाँ की सबसे आश्चर्यजनक वस्तु विशाल जलाशय है, इसका आकार 80-4 मी॰ × 12 मी॰ और गहराई 7-5 मी॰ थी। यहाँ के निवासी एक उन्नत जल प्रबंधन व्यवस्था से परिचित थे।
बनवाली
यह स्थल हरियाणा के हिसार जिले में सरस्वती नदी के किनारे स्थित था। इसकी खोज 1974 ई॰ में आर॰एस॰ विष्ट ने की। यहाँ से मिट्टी का बना हल तथा बढि़या किस्म का जौ प्राप्त हुआ है। बनवाली में सिन्धु सभ्यता की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता जल-निकास प्रणाली का अभाव था। यहाँ की सड़के नगर को तारांकित भागों में विभाजित करती है।
सुतकागेण्डोर
यह स्थल दक्षिण बलूचिस्तान में दाश्क नदी के तट पर स्थित इस नगर की खोज 1927 ई॰ में आरेल स्टीन ने की थी।
सुरकोटडा
गुजरात के कच्छ जिले में स्थित इस स्थल की खोज 1964 ई॰ में जे॰पी॰ जोशी ने की। यहाँ के कब्रिस्तान से कलश शवाधान के साक्ष्य मिले हैं। यहाँ घोड़े की कुछ हड्डियों के साक्ष्य मिले हैं।
दैमाबाद
महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में प्रवरा नदी के बाएं किनारे पर स्थित है। यह सैंधव सभ्यता का सबसे दक्षिणी स्थल है। यहाँ से रथ चलाते हुए मनुष्य, सांड, गैंडे की आकृतियाँ प्राप्त हुई हैं।
राखीगढ़ी
हरियाणा के हिसार जिले में घग्गर नदी के किनारे स्थित इस जगह की खोज 1969 ई॰ में सूरजभान ने की। है। यह 224 हेक्टेयर में है, जो भारत का सबसे बड़ा सैंधव स्थल है।
रोपड़
रोपड़ (पंजाब) सतलज नदी के बाएं तट पर स्थित है। उत्खनन कार्य – 1953-56 ई॰ के बीच यज्ञ दत्त शर्मा ने किया। इसे आधुनिक नाम रुपनगर से जानते है। यहाँ से मनुष्य के साथ पालतू कुत्ता के दफनाए जाने का साक्ष्य मिला है।
बालाकोट
यह नगर सीप उद्योग के लिए प्रसिद्ध था।
माण्डा
अखनूर तहसील के चिनाव नदी के दायें तट पर स्थित है।
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