पुरातात्वीय स्रोत – अभिलेख (Inscription)
- K.K. Lohani
- May 15, 2020
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Updated: Apr 6, 2021

पुरातात्वीय स्रोत - अभिलेख
पुरातात्विक स्रोतों के अंतर्गत सबसे अधिक महत्त्पूर्ण और विश्वसनीय स्रोत अभिलेख साक्ष्य है। प्राचीन भारत के अधिकतर अभिलेख पत्थर या धातु की चादरों पर खुदे मिले है, अतः उनमें साहित्य की भाँति हेर—फेर करना संभव नहीं था। यघपि सभी अभिलेखों (Inscription) पर उनकी तिथि अंकित नहीं है, फिर भी अक्षरों की बनावट के आधार पर उनका काल मोटे रूप में निर्धारित हो जाता है।
उत्कीर्ण लेखों के अध्ययन को एपीग्राफी (अभिलेखाशास्त्र) कहा जाता है। लिखने की सबसे प्राचीन प्रणाली हड़प्पा के मुद्राओं में पायी जाती है। ये लगभग 2500 ई.पू. के हैं। लेकिन उसे पढ़ने में अभी तक सफलता नहीं मिली है। इसीलिए अशोक के उत्त्कीर्ण लेखों के लेखन प्रणाली को सबसे प्राचीन माना जाता है। उसके अभिलेख चार लिपियों ब्राह्मी, खरोष्ठी, आरमेइक और यूनानी में है। केवल भूतपूर्व निजाम के राज्य में स्थित मास्की नामक स्थान और गुज्जर्रा (मध्य प्रदेश) से प्राप्त अभिलेखों में अशोक के नाम का स्पष्ट उल्लेख है। पाकिस्तान और अफगानिस्तान से प्राप्त अशोक के शिलालेखों में यूनानी और आरमाईक लिपियों का प्रयोग हुआ है।
अशोक के अन्य अभिलेखों में उसे देवताओं का प्रिये, प्रिददर्शी राजा कहा गया है। अशोक के अधिकत्तर अभिलेख ‘ब्राह्मी लिपि’ में है। खरोष्ठी लिपि फारसी लिपि की भाँति दाईं से बाईं ओर को लिखी जाती है। ब्राह्मी लिपि को सबसे पहले 1837 ई॰ में जेम्स प्रिंसेप नामक विद्वान ने पढ़ा था।
गुप्तकाल के पहले के अधिकतर अभिलेख (Inscription) प्राकृत भाषा में है और उनमें ब्राह्मणेतर धार्मिक संप्रदायों, जैसे कि बौद्ध धर्म और जैन धर्म का उल्लेख है। गुप्त एवं गुप्तोत्तर काल के अधिकतर अभिलेख संस्कृत में है और उनमें विशेष रूप से ब्राह्मण धर्म का उल्लेख है। अभिलेख से राजा के साम्राज्य विस्तार, विजय अभियान, उपलब्धी, धर्म, भूमि की चौहदी के संबंध में महत्वपूर्ण सूचना प्राप्त होता है।
महत्वपूर्ण अभिलेख
1. बोगाजकोई अभिलेख — 1400 ई॰पू॰
स्थान — एशिया माइनर (आधुनिक तुर्की)
इसमें वैदिककालीन चार देवता इन्द्र, वरुण, मित्र और नासत्य (अश्विनी कुमार) की चर्चा है। साथ ही साथ इसमें बलबूथ एवं तरुक्ष नामक दो दास साम्राज्य का उल्लेख है।
2. कस्सी अभिलेख — 1600 ई॰पू॰
इससे स्पष्ट होता है कि प्रारंभिक आर्य खानाबदोश थे।
इन अभिलेख से यह जानकारी मिलती है कि ईरानी आर्यो की एक शाखा का भारत आगमन हुआ।
3. पेरिपोलिस एवं वेहिस्तन अभिलेख — 1300 ई॰पू॰
पुरातात्विक साक्ष्य से पता चलता है कि पर्सेपोलिस के सबसे शुरुआती अवशेष लगभग 515 ई॰पू॰ पुराने हैं।
यह मिट्टी के तखती पर लिखा गया है। इसमें चर्चित वस्तु, स्थान एवं राजा का नाम भारत के वस्तु, स्थान एवं राजा से मिलता जुलता है। इसमें सिंधु नदि के महत्व पर प्रकाश डाला गया है। इसी से स्पष्ट होता है कि डेरियस ने किस प्रकार सिंधु नदी पार कर भारत पर आक्रमण किया।
4. हाथी गुम्फा अभिलेख
यहाँ उड़ीसा के खंडगिरी के पर्वत पर पाया गया है जिसे उदयगिरी पर्वत के नाम से जाना गया है।
इसे कलिंगराज खारवेल ने उत्कीर्ण कराया था।
हाथीगुम्फा के शिलालेख में खारवेल द्वारा परास्त किए गए तमिल देश संघात (राज्य संघ) का उल्लेख है।
खारवेल चेदी वंश का शासक था। तथा जैन धर्म को मानने वाला शासक था।
इस अभिलेख से यह स्पष्ट होता है कि खारवेल के समय मगध के राजा ने इसपर आक्रमण किया तथा यहाँ से जैन तीर्थंकर की मूर्ति मगध लाया था।
नागपंचमी का प्राचीनतम अभिलेखीय प्रमाण इसी अभिलेख से प्राप्त होता है।
5. गिरनार अभिलेख (जूनागढ़ अभिलेख)
क्षेत्र — स्वराष्ट्र (जूनागढ़, गुजरात, 150 ई॰)
यह एकमात्र अभिलेख है जो संस्कृत में है।
यह काव्य शैली में लिखा गया प्रथम अभिलेख है।
भयानक आँधी पानी के कारण प्राचीन सुदर्शन झील टूट फूट जाने का काव्यमय वर्णन है।
इस अभिलेख पर चंद्रगुप्त मौर्य, अशोक, स्कंधगुप्त के नाम का उल्लेख है।
इसे रूद्रदमा ने जारी किया था।
इस अभिलेख से स्पष्ट होता है कि रूद्रदमा ने उत्तर में मारवाड़, दक्षिण में कोंकण, पूर्व में मध्य प्रदेश और पश्चिम में सिंधु क्षेत्र तक साम्राज्य का विस्तार किया।
इस अभिलेख से स्पष्ट होता है कि चन्द्रगुप्त मौर्य ने सिंचाई के उद्देश्य से अपने राज्यपाल पुष्यगुप्त के द्वारा सुदर्शन झील का निर्माण करवाया था। इसमें अशोक के लिए अशोक मौर्य शब्द का प्रयोग हुआ है। इसी अभिलेख से स्पष्ट है कि स्कंधगुप्त के राज्यपाल ने सुदर्शन झील का पुननिर्माण करवाया था।
6. हेलियोडोरस का विदिशा या वेशनगर का गरूड़ ध्वज स्तम्भ अभिलेख
स्थान — वेशनगर (विदिशा, म॰प्र॰)
इसे यूनानी शासक एंटियोकस के राजदूत हेलियोडोरस ने स्थापित कराया था।
इस अभिलेख पर हेलियोडोरस ने अपने आप को परम भागवत एवं वासुदेवक कहा है। यह अभिलेख भारत में वैष्णव धर्म के विकास की प्रारंभिक सूचना उपलब्ध कराता है।
हेलियोडोरस काशी नरेश भागभद्र के दरबार में आया था। भागभद्र शुंग शासक था।
7. अयोध्या अभिलेख
स्थान — फैजबाद (उ॰प्र॰)
शासक — धनदेव
इस अभिलेख से शुंग वंश की वंशावली का पता चलता है।
इस अभिलेख से स्पष्ट होता है कि पुष्यमित्र शुंग ने दो बार अवश्मेघ यज्ञ कराया था तथा अशोक ने जो पशुबलि पर प्रतिबंध करा दिया था उस पर से रोक पुष्यमित्र शुंग ने हटा दिया था।
8. मंदसौर अभिलेख
क्षेत्र — मालाबार
शासक — यशोवर्मन
इसमें मंदसौर के सूर्य मंदिर की चर्चा है तथा मंदसौर के रेशम बुनकरों के द्वारा सूर्य मंदिर के दान देने की चर्चा है।
9. ऐहोल अभिलेख
स्थान — गुजरात
जारी करने वाला शासक — पुलकेसिन द्वितीय
लिखनेवाला — रविकृति
इसी अभिलेख से स्पष्ट होता है कि पुलेकेसिन द्वितीय ने नर्मदा नदी के तट पर हर्षवर्द्धन को पराजित किया था।
10. ग्वालियर अभिलेख
स्थान — मध्य प्रदेश
शासक — भोज
इससे स्पष्ट होता है कि राजा भोज ने सिंचाई के उद्देश्य से अनेक तालाब बनवाये तथा भोजपुर नगर की स्थापना की।
11. देवपाड़ा अभिलेख
क्षेत्र — बंगाल
वंश — सेन
शासक — विजय सेन
लेखक — उमापति धर
इसमें विजयसेन की उपलब्धियों की चर्चा है।
12. बाँसखेड़ा अभिलेख
क्षेत्र — उत्तर प्रदेश
शासक — हर्षवर्द्धन
इसमें हर्षवर्द्धन के साम्राज्य, विजय अभियान, उपलब्धि तथा बौद्ध धर्म के प्रति झुकाव की सूचना प्राप्त होता है।
13. मधुवन अभिलेख
क्षेत्र — उत्तर प्रदेश
शासक — हर्षवर्धन
इससे स्पष्ट होता है कि हर्षवर्धन ने कन्नौज और प्रयाग में दो बौद्ध महासम्मेलन का आयोजन करवाया।
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