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भारत का संवैधानिक विकास

  • Writer: K.K. Lohani
    K.K. Lohani
  • Jul 7, 2018
  • 10 min read

Updated: Mar 16, 2021



भारत का संवैधानिक विकास

भारत के सामुद्रिक रास्तों की खोज 15वीं सदी के अन्त में हुई जिसके बाद यूरोपीयों का भारत आना आरंभ हुआ। भारत की समृद्धि को देखकर पश्चिमी देशों में भारत के साथ व्यापार करने की इच्छा पहले से ही थी। यूरोपीय नाविकों द्वारा सामुद्रिक मार्गों का पता लगाना इन्हीं लालसाओं का परिणाम था। तेरहवीं सदी के आसपास मुसलमानों का अधिपत्य भूमध्य सागर और उसके पूरब के क्षेत्रों पर हो गया था और इस कारण यूरोपी देशों को भारतीय माल की आपूर्ति ठप्प पड़ गई। इंग्लैँड के नाविको को भारत का पता कोई 1578 इस्वी तक नहीं लग पाया था। 1578 में सर फ्रांसिस ड्रेक नामक एक अंग्रेज़ नाविक ने लिस्बन जाने वाले एक जहाज को लूट लिया। इस जहाज़ से उसे भारत जाने वाले रास्ते का मानचित्र मिला। 31 December सन् 1600 को कुछ व्यापारियों को इंग्लैँड की महारानी एलिज़ाबेथ ने ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना का अधिकार पत्र दिया। उन्हें पूरब के देशों के साथ व्यापार की अनुमति मिल गई। ईस्ट इंडिया कंपनी भारत आई और वह एक व्यापारी के रूप में पहले उनका आगमन हुआ और बाद में उन्होंनें भारत की राजनीति में उनका हस्तक्षेप शुरू हो गया। भारत की राजनीति में सबसे पहले अंग्रेजो या ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल प्रांत को चुना। बंगाल में पहले नवाब बैठा करते थें। भारत में अंग्रेजी शासन स्थापित होने में दो युद्धों का महत्वपूर्ण रहा – 1. प्लासी का युद्ध तथा 2. बक्सर का युद्ध। दोनों ही युद्धों में अंग्रेजो की विजय हुई और इस प्रकार भारत में अंग्रेजों ने अपना पहले व्यापारिक और बाद में राजनीतिक स्थिति को मजबूत किया।

1. प्लासी का युद्ध

  • किसके बीच – बंगाल का नवाब तथा अंग्रेज/ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच

  • युद्ध हुआ – 23 जून, 1757

  • जीते – अंग्रेज

  • बंगाल का नवाब – सिराजुद्दौला

  • सिराजुद्दौला का सेनापति – मीर जाफर

  • यह युद्ध में बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला तथा ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के सेनापति लाॅर्ड क्लाइव ने भाग लिया।

  • इस युद्ध में सिराजुद्दौला के हार का मुख्य कारण सिराजुद्दौला का मुख्य सेनापति मीर जाफर लाॅर्ड क्लाइव के हाथ बिक गया जिसके कारण सिराजुद्दौला को हार का सामना करना पड़ा।

  • प्लासी वर्तमान में पश्चिम बंगाल के नदिया जिले में स्थित है।

2. बक्सर का युद्ध

  • किसके बीच – बंगाल के नवाब (मीर कासिम) + अवध के नवाब (शुजाउद्दौला) + मुगल सम्राट (शाह आलम द्वितीय) ने ब्रिटिश ईस्ट कंपनी के विरूद्ध इस युद्ध में भाग लिया।

  • युद्ध हुआ – 22 अक्टूबर, 1764

  • जीते – अंग्रेज

  • ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के तरफ से हेक्टर मुनरो ने इस युद्ध में भाग लिया।

  • बक्सर वर्तमान में बिहार राज्य का जिला है।

  • बक्सर की विजय के बाद बंगाल में द्वैध शासन की स्थापना

द्वैध शासन

  • स्थापना किसने की – लाॅर्ड क्लाइव (1765-1767)

  • बंगाल का प्रथम गवर्नर लाॅर्ड क्लाइव ही था।

  • लाॅर्ड क्लाइव ने गवर्नर के रूप में दो कार्यकाल बिताये –

    • 1757-1760 (प्रथम कार्यकाल)

    • 1765-1767 (द्वितीय कार्यकाल)

  • 1765 से 1772 तक द्वैध शासन व्यवस्था मानी जाती है।

  • इलाहाबाद की संधि – 1765 (इस संधि से बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा की दीवानी प्राप्त हो गई)

  • दीवानी प्राप्त होने का मतलब होता है राजस्व प्राप्त करने का अधिकार हो जाना।

  • बक्सर के युद्ध के बाद जो संधि हुई उसे इलाहाबाद की संधि के नाम से जाना जाता है।

  • 1772 का जैसे ही समय खत्म हुआ इन लोगों ने 1773 के अंतर्गत बंगाल में लिखित कानून बनाने की शुरूआत की, और यही से भारत का संवैधानिक विकास की शुरूआत होती है।

  • इस समय कानून ब्रिटिश संसद में बनेंगे। इस ब्रिटिश संसद द्वारा जो कानून बनेगे उसे दो लोग लागू करेंगे। इसलिए इसे दो टाइम फ्रेम में इसे समझेंगे।

  1. कम्पनी के अधीन संवैधानिक विकास (1773 से 1857) : इसके अंतर्गत 1773, 1784, 1813 तथा 1833 के चार्टर एक्ट को पढ़ेंगे।

  2. ब्रिटिश शासन के अधीन संवैधानिक विकास (1857 से 1947) : इसके अंतर्गत 1858, 1909, 1919 तथा 1935 के अधिनियम को पढ़ेंगे।

1.      ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी/कंपनी के अधीन संवैधानिक विकास (1773 से 1857)

  • ब्रिटिश ईस्ट इंडिया की स्थापना 1599 ई॰ में ब्रिटेन में हुई। भारत आगमन 1600 ई॰ में

  • राजलेख 1600 के द्वारा ईस्ट इंडिया कंपनी को पूर्वी देशो से व्यापार करने का एकाधिकार प्रदान किया गया।

  • कम्पनी के भारतीय शासन की शक्तियाँ गवर्नर और उसकी परिषद् जिसमें 24 सदस्य थे, को सौंप दी गई।

  • भारत में कम्पनी के अधीन शासन को व्यवस्थित करने के उद्देश्य से बम्बई, मद्रास और कलकत्ता को प्रेसीडेन्सी नगर बना दिया गया व इसका शासन प्रेसीडेन्ट और इसकी परिषद् करती थी।

  • राजलेख 1726 के द्वारा कलकत्ता, बम्बई तथा मद्रास प्रेसीडेन्सियों के गवर्नर व उसकी परिषद् को विधि बनाने की शक्ति प्रदान की गई। क्योंकि इससे पहले कम्पनी के इंग्लैण्ड स्थित निदेशक बोर्ड को यह शक्ति प्राप्त थी। ये विधियाँ तब तक प्रभावी नहीं होती थीं जब तक कि वे इंग्लैण्ड स्थित कम्पनी के निदेशको द्वारा अनुमोदित न कर दी गई हो।

1773 का रेग्यूलेटिंग एक्ट/नियामक कानून

  • यह अंग्रेजों द्वारा भारत में बनाया गया प्रथम लिखित कानून था।

  • बंगाल के गवर्नर के पद को गवर्नर जनरल बना दिया गया।

  • बम्बई तथा मद्रास प्रेसीडेन्सी को कलकत्ता प्रेसिडेसी के अधिन कर दिया गया।

  • कलकत्ता (फोर्ट विलयम) में सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना का प्रावधान किया गया। ♦     सर्वोच्च न्यायालय         →     स्थापना – 1774         →    सदस्य – 4 (1 मुख्य न्यायाधीश तथा 3 अन्य न्यायाधीश)         →    मुख्य न्यायाधीश – लाॅर्ड एलिजा इम्पे

  • इस एक्ट के अधीन वारेन हेस्टिंग्स को बंगाल का प्रथम गवर्नर-जनरल बनाया गया।         →     बंगाल का प्रथम गवर्नर – लाॅर्ड क्लाइव         →     बंगाल के अंतिम गवर्नर – वारेन हेस्टिंग्स         →     बंगाल के प्रथम गवर्नर जनरल – वारेन हेस्टिंग्स         →     बंगाल के अंतिम गवर्नर जनरल – लाॅर्ड विलियम बैंटिक         →     भारत का प्रथम गवर्नर जनरल – लाॅर्ड विलियम बैंटिक

Note : दोस्तों 1773 के रेग्यूलेटिंग एक्ट के तहत बंगाल के गवर्नर के पद को समाप्त कर गवर्नर जनरल क पद बनाया जाता है इसलिए बंगाल का अंतिम गवर्नर जो होगा वहीं बंगाल का प्रथम गवर्नर जनरल होगा और जो बंगाल का अंतिम गवर्नर जनरल होगा, वही भारत का प्रथम गवर्नर जनरल होगा।

1784 का पिट्स इंडिया एक्ट

  • पिट्स इंडिया एक्ट नाम क्यों पड़ा – तत्कालिन युवा ब्रिटिश प्रधानमंत्री विलियम पिट के नाम पर इस अधिनियम का नामकरण किया गया।

  • इस एक्ट के तहत अंग्रेजों ने अपने व्यापारिक तथा राजनीतिक कार्यों को पृथक-पृथक कर लिया।

  • जब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना हुई उस समय कम्पनी के सदस्यों का जो समूह था उसे बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स (संचालक मंडल) के नाम से जाना जाता था। जिसमें 24 सदस्य थे।

  • व्यापार करने का जो कार्य था वह बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स का था।

  • 1773 के बाद दूसरा एक काम राजनीति करना हो गया।

  • वह कौन-सा अधिनियम था जिससे अंग्रेजों ने अपने व्यापारिक तथा राजनीतिक कार्यो को अलग-अलग कर लिया – 1784 का पिट्स इंडिया एक्ट

1813 का चार्टर एक्ट

  • इस एक्ट के द्वारा भारत में ईसाई मिशनरियों को प्रवेश करने व धर्म प्रचार करने की अनुमति दी गई।

  • भारत में व्यापार पर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का एकाधिकार समाप्त कर दिया गया।

  • कम्पनी को ब्रिटिश संसद द्वारा अगले 20 वर्षों के लिए भारतीय प्रदेशों तथा राजस्व पर नियंत्रण का अधिकार दे दिया गया।

  • किस अधिनियम द्वारा ईसाई धर्म की मिशनरियों को भारत में ईसाई धर्म का प्रचार-प्रसार करने की अनुमति दे दी गई 1813 के चार्टर एक्ट

1833 का चार्टर एक्ट

  • बंगाल के गवर्नर जनरल के पद को भारत का गवर्नर जनरल बना दिया गया।

  • गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी परिषद् में 3 सदस्य होते थे। इस अधिनियम के द्वारा गवर्नर जनरल की परिषद् में कानून बनाने के लिए चौथे विधि सदस्य के रूप में लाॅर्ड मैकाले को सम्मिलित किया गया।

  • इस एक्ट के द्वारा भारत में दास प्रथा को गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया और गवर्नर जनरल को निर्देश दिया गया कि वह भारत में दास-प्रथा को समाप्त करने के लिए आवश्यक कदम उठाए।

  • भारत का प्रथम विधि मंत्री या सदस्य थे – लाॅर्ड मैकाले।

  • किस अधिनियम द्वारा भारतीयों को प्रशासन में शामिल होने का अधिकार दिया गया – 1833 का चार्टर अधिनियम


2. ब्रिटिश शासन के अधीन संवैधानिक विकास (1858 से 1947)


1858 का भारत शासन अधिनियम

  • कहाँ बना – ब्रिटिश संसद में

  • लागू – ब्रिटिश महारानी (विक्टोरिया)

  • घोषणा – 1 नवम्बर, 1858 को इलाहाबाद दरबार, तात्कालिन गवर्नर जनरल (वायसराय) – लाॅर्ड केनिंग

  • अब गवर्नर जनरल का नाम परिवर्तित करके वायसराय कर दिया गया।

  • लाॅर्ड कैनिंग भारत के प्रथम वायसराय बने।

  • भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन इस अधिनियम द्वारा समाप्त कर दिया गया।

  • 1858 के भारत शासन अधिनियम को भारतीय स्वतंत्रता का मैग्नाकार्टा (आजादी का महान चार्टर) भी कहा जाता है।

  • भारत की शासन व्यवस्था को संचालित करने के लिए 15 सदस्यीय भारत परिषद् का गठन किया। भारत परिषद् के मुखिया को भारत सचिव/मंत्री (इंडियन सेक्रेटरी) के नाम से जाना जाएगा।

  • भारत परिषद् का गठन या भारत सचिव पद की स्थापना किस अधिनियम द्वारा हुई – 1858 के भारत शासन अधिनियम

  • भारत सचिव/मंत्री जो होगा वह लंदन में बैठेगा।

  • वायसराय भारत में बैठेगा।

1909 का भारत शासन अधिनियम

  • इसे मार्ले मिण्टो अधिनियम/सुधार/Reform  के नाम से भी जाना जाता है।

  • लाॅर्ड मार्ले तात्कालिन भारत सचिव

  • लाॅर्ड मिण्टो-II (1905.1910) तात्कालिन वायसराय

  • प्रथम भारतीय जो गवर्नर जनरल की कार्यकारणी परिषद् में शामिल हुआ – सत्येन्द्र प्रसाद सिन्हा।

  • इस अधिनियम ने पृथक निर्वाचन के आधार पर मुस्लिमों के लिए सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व का प्रावधान किया। इसके अंतर्गत मुस्लिम सदस्यों का चुनाव मुस्लिम मतदाता ही कर सकते थे। इस प्रकार इस अधिनियम ने सांप्रदायिकता को वैधानिकता प्रदान की और लाॅर्ड मिंटो को सांप्रदायिक निर्वाचन के जनक के रूप में जाना गया।



1919 का भारत शासन अधिनियम

  • इसे मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार/अधिनियम के नाम से जाना जाता है।

  • मांटेग्यू भारत के राज्य सचिव थे, जबकि चेम्सफोर्ड भारत के वायसराय थे।

  • क्रमिक रूप से 1919 में भारत शासन अधिनियम बनाया गया, जो 1921 में लागू किया गया।

  • उद्देश्य – उत्तरदायी शासन की स्थापना करना

  • 1919 की महत्त्वपूर्ण विषता प्रान्तों में द्वैध शासन व्यवस्था की शुरूआत।

  • इस अधिनियम की प्रमुख विशेषता प्रान्तों में उत्तरदायी शासन की स्थापना के लिए द्वैध शासन व्यवस्था का प्रारंभ करना था। इसके तहत प्रांतीय विषयों को भी दो भागों में विभाजित किया गया। 1. आरक्षित विषय: इन विषयों पर शासन गवर्नर द्वारा कार्यकारी परिषद् की सहायता से किया जाता था, जो विधान परिषद् के प्रति उत्तरदायी नहीं थी। इसमें सभी महत्वपूर्ण विषय सम्मिलित थे। जैसे – कानून एवं व्यवस्था, वित्त, भू-राजस्व, उद्योग कृषि इत्यादि। 2. हस्तान्तरित विषय: इस विषयों पर शासन गवर्नर मंत्रियों की सहायता से करता था, जो विधानपरिषद् के प्रति उत्तरदायी होते थे। इनमें गैर-महत्त्वपूर्ण विषय सम्मिलित थे। जैसे – स्थानीय स्वशासन, स्वच्छता, स्वास्थ्य इत्यादि। शासन की इस दोहरी व्यवस्था को द्वैध (यूनानी शब्द डाई-आर्की से व्युत्पन्न) शासन व्यवस्था कहा गया।


  • अधिनियम द्वारा पहली बार देश में भारतीय विधान परिषद् के स्थान पर द्विसदनात्मक व्यवस्था का प्रारंभ हुआ। (a) राज्य परिषद् (वर्तमान के राज्य सभा के समान), (b) केन्द्रीय विधान सभा (वर्तमान के लोकसभा के समान)।

  • वायसराय की कार्यकारी परिषद् की 6 सदस्यों में से (कमांडर-इन-चीफ को छोड़कर) तीन सदस्यों का भारतीय होना आवश्यक था।

  • 1909 के पृथक निर्वाचन मंडल को विस्तारित करते हुए इसे – 4 (पंजाब के सिक्खों, भारतीय ईसाईयों, यूरोपियनों तथा आंग्ल भारतीय) पर भी लागू किया गया।

  • इसने पहली बार केंद्रीय बजट को राज्यों के बजट से अलग कर दिया और राज्य विधानसभाओं को अपना बजट स्वयं बनाने लिए अधिकृत कर दिया।

  • इस कानून ने लंदन में भारत के उच्चायुक्त के कार्यालय का सृजन किया और अब तक भारत सचिव द्वारा किए जा रहे कुछ कार्यों को उच्चायुक्त को स्थानांतरित कर दिया गया।

  • लोकसेवा आयोग का गठन का प्रावधान

    PCS (लोकसेवा आयोग)     यह ढंग से काम न कर सका और इसकी असफलता की जाँच के लिए 1923 में लाॅर्ड ली की अध्यक्षता में एक आयोग बैठाया गया जिसे ली आयोग के नाम से जानते है। ली आयोग ने एक केन्द्रीय लोक सेवा आयोग (CPCS) की गठन की सिफारिश की। 1 अक्टूबर, 1926 को सर रोस बार्कर की अध्यक्षता में केन्द्रीय लोक सेवा आयोग (CPCS) का गठन कर लिया गया। 1935 में भारत शासन अधिनियम में इसका नाम CPCS से बदल कर FPCS (Federal Public Commission) संघ लोक सेवा आयोग कर दिया गया। 1950 में भारतीय संविधान लागू जब हुआ तो इसे UPSC (Union Public Service Commission) कर दिया गया।

    स्मरणीय तथ्य    

  1. ली आयोग का गठन क्यों हुआलोक सेवाओं में सुधार करने के लिए

  2. अनु॰ 315 में यह प्रावधान किया गया है प्रत्येक राज्य में एक राज्य लोक सेवा आयोग होगा।

  3. अनु॰ 315 में यह भी प्रावधान है कि दो या दो से अधिक राज्यों का एक लोकसेवा आयोग भी हो सकता है।

  4. भारत में प्रथम जन आन्दोलन किसे कहा जाता है – 1916 स्वदेशी आन्दोलन (होम रूल)

  5. स्वराज्य की प्राप्ति के लिए बाल गंगाधर तिलक ने 28 अप्रैल, 1916 को बेलगांव में होमरूल लीग की स्थापना की गई थी। जिसका सबसे ज्यादा प्रभाव कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्यप्रांत और बरार तक फैला हुआ था। इस होम लीग के प्रमुख नेता बाल गंगाधर तिलक और एनी बेसेंट थी।

  6. वेलेन्टाइन सिरोल (ब्रिटिश पत्रकार) ने तिलक को भारतीय अशांति का जन्मदाता कहा है।

  • 10 वर्षों बाद एक आयोग/कमीशन के गठन का प्रावधान किया गया।

साइमन कमीशन/आयोग

1919 के भारत शासन अधिनियम के अनुसार कमीशन को 1929 में भेजना था पर उसे दो वर्ष पहले 1927 में ही भेजा गया। ब्रिटिश सरकार ने नवम्बर 1927 में नए संविधान में भारत की स्थिति का पता लगाने के लिए सर जाॅन साइमन के नेतृत्व में सात सदस्यीय वैधानिक आयोग के गठन की घोषणा की। 3 फरवरी, 1928 को साइमन कमीशन भारत के बम्बई पहुँची। इसके सभी सदस्य ब्रिटिश थे इसलिए सभी दलों ने इसका बहिष्कार किया। आयोग ने मार्च 1930 में अपनी रिपोर्ट पेश की तथा द्वैध शासन प्रणाली, राज्यों में सरकारों का विस्तार, ब्रिटिश भारत के संघ की स्थापना एवं सांप्रदायिक निर्वाचन व्यवस्था को जारी रखने आदि की सिफारिशें की। आयोग के प्रस्तावों पर विचार करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने ब्रिटिश भारत और भारतीय रियासतों के प्रतिनिधियों के साथ तीन गोलमेज सम्मेलन किए। इन सम्मेलनों में हुयी चर्चा के आधार पर, ‘संवैधानिक सुधारों पर एक श्वेत-पत्र’ तैयार किया गया, जिसे विचार के लिए ब्रिटिश संसद की संयुक्त प्रवर समिति के समक्ष रखा गया। इस समिति की सिफारिशों को (कुछ संशोधनों के साथ) भारत परिषद् अधिनियम, 1935 में शामिल कर दिया गया।

महत्त्वपूर्ण तथ्य

  1. तात्कालिन समय में ब्रिटेन में तीन पाटियों का बोलबाला हुआ करता था – 1. लिबरल पार्टी 2. लेबर पार्टी 3. कंजरवेटिभ पार्टी।

  2. उस समय ब्रिटेन में कंजरवेटिभ की सरकार थी। और इन्हें यह अभास हो गया था कि अगले साल 1929 में जो चुनाव होगी उसमें लेबर पार्टी पूर्ण बहुमत से सत्ता में आने वाली है।

  3. कंजरवेटिभ पार्टी का दृष्टिकोण भारत के प्रति अधिक उदार नहीं था जितना की लेबर पार्टी का। तो कंजरवेटिभ पार्टी को यह भय था कि लेबर पार्टी कहीं 1929 में सत्ता में आएगी और उस समय यह कमीशन भारत भेजना है तो हो सकता है कि यह पार्टी कुछ अच्छी बाते भारत के संदर्भ में न कर दे। कहीं भारत को स्वराज ना दे दे। इस बात से कंजरवेटिभ पार्टी डर रही थी और इस कारण साइमन कमीशन को 2 साल पहले ही 1927 में भारत भेजने की घोषणा हुई है।

  4. जब भारत 1947 में आजाद हुआ उस समय ब्रिटेन के प्रधानमंत्री हुआ करते थे जाॅन क्लिमेंट एटली जो साइमन कमीशन के साथ भारत आए थे। जो लेटर पार्टी के थे।

  5. साइमन कमीशन को आलोचना में श्वेत कमीशन के नाम से भी जाना जाता है। क्योंकि इसके सभी सदस्य अंग्रेज थे।

  6. देशी रियासतों के एकीकरण हेतु नरेश मंडल (नरेन्द्र मंडल) के गठन का प्रावधान – 1919 एक्ट

  7. नरेश मंडल का गठन – 1921

1935 का भारत शासन अधिनियम

  • ब्रिटिश संसद ने जितने भी अधिनियम बनाए उनमें सबसे बड़ा अधिनियम, जिसमें 321 धाराएँ और 10 अनुसूचियाँ थीं।

  • इस अधिनियम ने केंद्र और इकाईयों के बीच तीन सूचियों – संघीय सूची (59 विषय), राज्य सूची (54 विषय) और समवर्ती सूची (दोनों के लिए, 36 विषय) के आधार पर शक्तियों का बंटवारा कर दिया। अवशिष्ट शक्तियाँ वायसराय को दे दी गई।

  • अखिल भारतीय संघ की स्थापना का प्रावधान ♦     लेकिन कभी भी अस्तित्व में नहीं आ पाया। ♦     कारण – क्योंकि देशी रियासतों ने शामिल होने से मना कर दिया था।

  • कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों ने स्वीकार नहीं किया।

  • जवाहर लाल नेहरू द्वारा इसे दासता और गुलामी का अधिकार पत्र कहा। ♦     किस अधिनियम को 1935 ♦    कहाँ कहा गया – जवाहर लाल नेहरू की आत्म कथा डिस्कवरी आफ इंडिया (भारत एक खोज)

  • जिन्ना द्वारा इसे सड़ा-गला अस्वीकृति के योग्य कहा है।

  • इसने दलित जातियों, महिलाओं और मजदूर वर्ग के लिए अलग से निर्वाचन की व्यवस्था कर सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व व्यवस्था का विस्तार किया।

  • इसके अंतर्गत देश की मुद्रा और शाख पर नियंत्रण के लिए भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना की गई।

  • इसके तहत 1937 में संघीय न्यायालय की स्थापना की गई।

  • 1935 के भारत शासन अधिनियम की रूप रेखा कब तय की गई – दिसम्बर 1932 के तीसरे गोलमेज में।

  • प्रांतों को स्वातता किस अधिनियम के तहत प्रदान की गई – 1935

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